Thursday, 4 September 2025

आत्म - कथ्य





अपने अल्प ज्ञान के आधार पर किये गये इस  काव्य रूपान्तर को मैं सर्व प्रथम अपने आराध्य देव वासुदेव
भगवान  श्री कृष्ण के चरणों में ही समर्पित करता हूँ जिनकी कृपा से  मैं इस अत्यंत
 कठिन कार्य को संपन्न करनेमें समर्थ हो सका.
पैंतीस वर्ष की सुदीर्घ अवधि  में पुलिस विभाग की सेवा  में व्यस्त रहते हुए भी गीता का अध्ययन करता रहा हूँ. और उसके संदेशों, शिक्षाओं  का प्रभाव मन - मस्तिष्क पर निरंतर अंकित होता हुआ महसूस किया. छात्र जीवन से ही काव्य -रचना में भी रुचि थी, अतः मेरी हार्दिक इच्छा थी कि इस महान, पावन और अद्वितीय  ज्ञानामृत का सरल हिंदी में अनुवाद करके इसे उन लोगों तक भी पहुँचाया जाये जो संस्कृत भाषा का ज्ञान न होने के कारण इस अमृत वाणी से वंचित रह जाते हैं.

प्रभु- कृपा से सकुशल सेवा निवृत्ति पर मुझे इस इच्छा को कार्य रूप में परिणत करने के  लिये पर्याप्त समय मिला और मैं उसका सदुपयोग करने में जुट गया. अनेक व्यवधानों के कारण  लगभग दो वर्ष की अवधि में यह कार्य संपन्न हो पाया. अब,जब कि यह रचना आकार  ले चुकी है तो मैं इसे उन समस्त धर्म - प्राण   नर - नारियों को अर्पित करना चाहता हूँ, जिन्हें  भगवान में अटूट आस्था है और जो उनके मुखारविन्द से निः सृत इस अमरवाणी का रसास्वादन करने के इच्छुक हैं.

मैं इस रूपान्तर को सभी विद्वत जन एवं गीता -मर्मज्ञों  को भी इस क्षमा याचना सहित अर्पित करता हूँ कि इसमें वे जो भी त्रुटियाँ अथवा कमियाँ पायें, उन्हें मेरी भक्ति - भावना के रूप में स्वीकार करें, क्योंकि विषय अत्यंत  गहन है और इस पावन गंगा के श्लोकों की देश- विदेश के विद्वान  अपने- अपने दृष्टि कोणों से  व्याख्या करते आये हैं. मैंने जन साधारण के हित में उसे सरल भाषा में प्रस्तुत करने का साहस किया है. यदि मेरा यह प्रयास  सफल हुआ तो यह मेरे जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि होगी, और मैं अपने जीवन को धन्य  समझूँगा.
      निर्णय  मेरे  सुधी पाठकों को ही करना है 🙏🙏
       ईश्वरी दत्त द्विवेदी

 (प्रथम संस्करण (1999) से  संपादित अंश)
          

      


Tuesday, 2 September 2025

गीता काव्य रूपान्तर -- द्वितीय संस्करण

मैं गायन में 'वृहद साम' 
          छन्दों में हूँ गायत्री मन्त्र 
' मार्गशीर्ष ' द्वादस मासों में
                 ऋतुओं में ऋतुराज वसंत    
  
                                                               10/35
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  धर्म, अध्यात्म और ज्ञान के दृष्टा श्री कृष्ण की स्वयं के लिये व्यक्त की गयी यह  अवधारणा गीता की भी सटीक व्याख्या है. उनके उपदेशों से सृजित श्री मद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है. भारत की आत्मा है. एक ऐसा ग्रन्थ जो न केवल धर्म, अपितु नीति शास्त्र का चितेरा और कर्मयोग का अग्रणी शास्त्र भी है, जो केवल धार्मिक ग्रन्थ नहीं, वरन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्ग दिखाने वाली ज्योति शलाका है जिसमें धर्म, कर्त्तव्य  और भक्ति का प्रकाश समाहित है और इसीलिए यह समस्त शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ  मानी गयी है.

ऐसे अप्रतिम ग्रन्थ गीता का यह काव्यरूपांतर अपनी सरलता और माधुर्य से पाठकों को उस शाश्वत सत्य  से परिचित कराता है जो श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर  अर्जुन को उपदेश स्वरुप प्रदान किया था. यह ज्ञान केवल अर्जुन को ही नहीं बल्कि उनके माध्यम से समस्त जगत को दिया गया उद्बोधन है जिसमें जीवन को समझने के अनमोल सूत्र  निहित हैं. प्रस्तुत रूपान्तर  मेरे पूज्य पिताजी की कठिन साधना का प्रतिफल है. उनका श्रद्धा भाव, गहन अध्ययन और भाषा कौशल  इस कृति में परिलक्षित है. संस्कृत के गूढ श्लोकों  का भावार्थ सहज और प्रवाहपूर्ण छन्दों में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया  हैं कि गीता का दार्शनिक गांभीर्य भी बना रहता है और  साथ ही इसकी जीवनोपयोगी  शिक्षायें भी पाठक तक सरलता से पहुँच जाती हैं.

वर्ष 1999 में प्रकाशित इस रचना को  सामान्य पाठकों के साथ - साथ साहित्य जगत में भी व्यापक सराहना मिली. बीते दो दशकों की अवधि में  समय - समय-- पर अनेक पाठकों से  प्रतिक्रियायें मिलती रही हैं, जो इस बात की द्योतक हैं कि  इतने वर्षों के बाद भी यह पुस्तक  कहीं न कहीं  पढ़ी और सराही जा रही है और मूल ग्रन्थ की भाँति ही आज भी  प्रासंगिक और प्रभावी बनी हुई है, अतः एक नवीन संस्करण द्वारा इस रचना को पुनः प्रकाशित कर  कुछ और सुधी पाठकों तक  भी पहुँचाने  का विचार मेरे  मन में आया, जिसे किसी दैवी प्रेरणा का संकेत मानकर मैंने श्रद्धापूर्वक शिरोधार्य कर साकार करने का प्रयास किया है. 

  प्रस्तुति  की दृष्टि से प्रथम संस्करण के  स्वरुप में सामान्य सा परिवर्तन  किया गया है , किन्तु मूल रचना  यथावत है.  चूंकि वह स्वयं में ही  इतनी परिपूर्ण  है कि उसमें कुछ भी जोड़ने या घटाने की न तो आवश्यकता  है और न  औचित्य, अतएव इस नवीन कलेवर में भी उसे पूर्ण सम्मान के साथ ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है.

 अपने स्वर्गीय पिताश्री  की इस अनमोल कृति के नवीन संस्करण को उनके प्रति श्रद्धांजलि स्वरुप प्रकाशित करते हुए  मुझे  परम संतोष की अनुभूति हो रही है. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनकी अमूल्य साधना  के इस  सुफल को पुनः पाठकों तक पहुँचाने का  अवसर मिला है. आशा करती हूँ  कि  पूर्व की भाँति  यह  पुस्तक भी नये \ पुराने  सभी पाठकों को गीता के अमृत सन्देशों से समृद्ध और आनंदित  करेगी  और वे  इसको उसी श्रद्धा और प्रेम से अंगीकार करेंगे जिस भाव से इसे पुनर्प्रकाशित किया गया है

. इन्दु नौटियाल

    देहरादून



Monday, 1 September 2025

श्री मद्भगवद्गीता-- हिंदी काव्य रूपान्तर -- श्री ईश्वरी दत्त द्विवेदी


                                                                       प्रस्तावना
                                                              

श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति  की अमूल्य निधि है. यह केवल धार्मिक ग्रन्थ नहीं अपितु मानव जीवन  का परम मार्गदर्शक है, जो मानव को उसके कर्तव्य, धर्म और  आत्म ज्ञान की  ओर  उन्मुख करता है.  गीता का उपदेश केवल युद्ध - भूमि तक सीमित नहीं है, वरन यह समस्त मानवता के लिये एक शाश्वत सन्देश है, जो प्रत्येक युग में प्रासंगिक बना रहता है. इसमें अर्जुन और श्री कृष्ण का संवाद हर जिज्ञासु आत्मा और उसके अन्तःकरण में स्थित ईश्वर के बीच का संवाद है. इसका प्रत्येक श्लोक जीवन के जटिलतम प्रश्नों का  उत्तर प्रदान करता है और जिज्ञासु को  आत्मिक शांति और समाधान की ओर ले जाता है.गीता हमें यह सिखाती है कि संकट, मोह और  भ्रम  की घड़ी में भी कर्तव्य परायणता, निष्काम भाव और आत्मिक दृढ़ता ही मानव का सच्चा आश्रय है.

इसी गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रन्थ को सुलभ और सरस बनाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है श्री ईश्वरी दत्त द्विवेदी ने. उनका यह काव्य रूपांतर संस्कृत श्लोकों की गंभीरता को बनाये रखते हुए हिंदी छन्दों की मधुरता में ढला हुआ है. इस प्रस्तुति  से  गीता का अमृत सन्देश केवल विद्वानों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि साधारण पाठक भी उसकी गहराई को सहज भाव से आत्मसात कर सकता है. 

लेखक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने भावानुवाद  में कहीं भी मूल ग्रन्थ की गरिमा से समझौता नहीं किया. गीता के प्रत्येक अध्याय, प्रत्येक श्लोक के सार को उन्होंने ऐसे सरल और प्रवाहपूर्ण छन्दों में ढाला है जो पाठक को दार्शनिक गंभीरता से बोझिल नहीं करते, बल्कि रस और प्रेरणा से भर देते हैं. उनके शब्दों में दार्शनिक विवेक के साथ -साथ भक्ति का माधुर्य और काव्य की सरसता भी झलकती है.

आज के समय में, जब जीवन की भागदौड़, भौतिकता और तनाव ने मनुष्य को अशांति और असंतोष से भर दिया है, गीता के उपदेश पहले से भी अधिक आवश्यक प्रतीत होते हैं. श्री द्विवेदी द्वारा किया गया यह रूपान्तर  केवल उपदेशात्मक ग्रन्थ नहीं अपितु आत्मा के लिये अमृत स्रोत बन कर सामने आ जाता है.छन्दों का लयात्मक प्रवाह पाठक को बाँध लेता है और सन्देश ह्रदय तक सहजता से पहुँच जाता है. यही इस कृति की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि वह मन और मस्तिष्क दोनों को ही स्पर्श करती है.

   यह काव्य - रूपान्तर केवल अनुवाद नहीं, बल्कि साधक का आत्मानुभव है. इसमें  लेखक का गहन अध्ययन, अध्यात्म के प्रति उनकी आस्था और साहित्यिक अभिरुचि का  अद्भुत संगम  दिखाई देता है उन्होंने गीता को अपने अन्तःकरण से जी कर ही उसके  भावों को कवित्व में ढाला है, इसीलिए यह कृति ह्रदय स्पर्शी बन पड़ी है.

इस रूपान्तर  के माध्यम से गीता का शाश्वत सन्देश नई पीढ़ी तक पहुँचाना सराहनीय प्रयास है. यह केवल गीता का पुनर्पाठ नहीं बल्कि जीवन- मूल्यों की  पुनर्स्थापना भी है. जब - जब  मनुष्य अपने मार्ग से विचलित होता है, तब - तब  गीता का यह स्वर उसे सही दिशा दिखाता है. गीता के सन्देश निः संदेह उस आलोक स्तम्भ की तरह हैं जो अंधकार में भटके पथिक को उसकी सही राह दिखाता है.

 यह कृति न केवल गीता के सन्देश को नई पीढ़ी तक  पहुँचाने का माध्यम है वरन उस  श्रेष्ठ परंपरा  का भी उदाहरण है जिसमें अध्यात्म और साहित्य  का सुन्दर संगम  दिखाई देता है यहाँ न केवल शास्त्र की गंभीरता है, बल्कि काव्य का सौंदर्य भी है, न केवल उपदेश है, बल्कि आत्मीय संवाद भी है. यह काव्य - रूपान्तर समय की माँग है क्योंकि इसके माध्यम से गीता का शाश्वत सन्देश अधिकाधिक  पाठकों तक पहुँच कर उनके जीवन की राह को आलोकित करेगा 

Wednesday, 18 June 2025

एक पर्वत, एक योगी

 



        एक पर्वत,एक योगी 

       नीला आकाश! दूर, दूर तक फैली हिमाच्छादित  चोटियाँ 

      उनके बीच एक शिखर,  दीखता है शांत, 

       लेकिन उसमें कम्पन भी है, 

      जैसे भीतर ध्यान चल रहा हो.

     उसकी चुप्पी में गूँज है  आत्मा की --

     वह बोलता  नहीं किन्तु सुनता है सब कुछ.       

     वह चलता नहीं,

      पर बहती हैं  असंख्य जलधारायें  उस से.

      उसकी ऊँचाई तुम्हें सिर झुकाना सिखाती है-

      और उसकी कठोरता-- अपने भीतर करुणा को सहेज रखना

       वह योगी है -- चिर - समाधिस्थ --

       फिर भी सदैव जागृत.


Sunday, 20 April 2025

COUNT YOUR BLESSINGS

      

Start counting your blessings 

Right now

scattered around they are

In number and ways 

More than you can imagine.


Here is the great, good Earth 

You are standing upon

Enjoying the countless bounties

She offers to you freely

Without asking for a return favour. 


Enveloping it is the atmosphere

Balancing the vital elements

The air, fire and water cycle

 To ensure life keeps flourishing

 Upon this vast  planet.


   And the seamless blue sky

   Overlooking  like an angel

   Is Sending light and warmth 

   From its  heavenly lamps 

    The glorious Sun and Moon


     Being alive herein

    With  such unique gifts assured

     Isn't an ultimate blessing in itself

     To feel truly grateful to

     The Supreme  Provider?



 

  

 







Saturday, 14 December 2024

Nirjharini: याचना

Nirjharini: याचना:      हे मेरे प्रभु!  विनती है मेरी तुमसे  कि मिटा डालो समूल  मेरे ह्रदय की दरिद्रता  को  उस पर निरंतर प्रहार करके शक्ति दो मुझे देव  सुख दुख...

Wednesday, 18 October 2023

Horrors of war


       Scenes from the war zone!!

      Missile and rockets darting

      from one side to the other,

      Making the sky tremble 

      No less than the earth below.


       Houses and tall buildings,

      Crumbling down like pack of cards,

      Debris piled up on the ground,

      Silent proof of utter devastation,

       Caused by insane minds.


        Hapless victims praying for life,

        In the wake of unimaginable plight,

         Keep asking themselves and others,

       " What crime or sin did we commit,

         To deserve this  inhuman torture? "


        What evil spirit  did  initiate,

        This mad, mad, misadventure,

        Thrusting unsuspecting lives,

        Into the blazing  flames  of

      Excruciating pain and death?


       But what I seek to know is not,       

       Who to blame for this bloody venture,

        Nor does it  interest me to learn,

         Who is losing ground in the battle,

        Or,  who is likely to emerge the winner.


       For, I know it's never going to end,

          As hatred begets hatred only,

         And revenge with its deadly teeth,

         Is ever on prowl to dig out again,

        What appears to have been  buried.


          But my heart instinctively goes 

        Beyond the  visuals on TV screen 

           Imagining the fate of those abducted

           Destined to undergo untold sufferings

            For no fault of theirs.


            I know its rather futile to hope 

            An early end to this ugly warfare

          But do wish some miracle to happen

         Concluding it in amicable solutions 

         To avoid  further loss of  precious lives 

   


      Picture from internet

     Courtesy --  freepik. Com