श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है. यह केवल धार्मिक ग्रन्थ नहीं अपितु मानव जीवन का परम मार्गदर्शक है, जो मानव को उसके कर्तव्य, धर्म और आत्म ज्ञान की ओर उन्मुख करता है. गीता का उपदेश केवल युद्ध - भूमि तक सीमित नहीं है, वरन यह समस्त मानवता के लिये एक शाश्वत सन्देश है, जो प्रत्येक युग में प्रासंगिक बना रहता है. इसमें अर्जुन और श्री कृष्ण का संवाद हर जिज्ञासु आत्मा और उसके अन्तःकरण में स्थित ईश्वर के बीच का संवाद है. इसका प्रत्येक श्लोक जीवन के जटिलतम प्रश्नों का उत्तर प्रदान करता है और जिज्ञासु को आत्मिक शांति और समाधान की ओर ले जाता है.गीता हमें यह सिखाती है कि संकट, मोह और भ्रम की घड़ी में भी कर्तव्य परायणता, निष्काम भाव और आत्मिक दृढ़ता ही मानव का सच्चा आश्रय है.
इसी गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रन्थ को सुलभ और सरस बनाने का प्रशंसनीय प्रयास किया है श्री ईश्वरी दत्त द्विवेदी ने. उनका यह काव्य रूपांतर संस्कृत श्लोकों की गंभीरता को बनाये रखते हुए हिंदी छन्दों की मधुरता में ढला हुआ है. इस प्रस्तुति से गीता का अमृत सन्देश केवल विद्वानों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि साधारण पाठक भी उसकी गहराई को सहज भाव से आत्मसात कर सकता है.
लेखक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने भावानुवाद में कहीं भी मूल ग्रन्थ की गरिमा से समझौता नहीं किया. गीता के प्रत्येक अध्याय, प्रत्येक श्लोक के सार को उन्होंने ऐसे सरल और प्रवाहपूर्ण छन्दों में ढाला है जो पाठक को दार्शनिक गंभीरता से बोझिल नहीं करते, बल्कि रस और प्रेरणा से भर देते हैं. उनके शब्दों में दार्शनिक विवेक के साथ -साथ भक्ति का माधुर्य और काव्य की सरसता भी झलकती है.
आज के समय में, जब जीवन की भागदौड़, भौतिकता और तनाव ने मनुष्य को अशांति और असंतोष से भर दिया है, गीता के उपदेश पहले से भी अधिक आवश्यक प्रतीत होते हैं. श्री द्विवेदी द्वारा किया गया यह रूपान्तर केवल उपदेशात्मक ग्रन्थ नहीं अपितु आत्मा के लिये अमृत स्रोत बन कर सामने आ जाता है.छन्दों का लयात्मक प्रवाह पाठक को बाँध लेता है और सन्देश ह्रदय तक सहजता से पहुँच जाता है. यही इस कृति की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि वह मन और मस्तिष्क दोनों को ही स्पर्श करती है.
यह काव्य - रूपान्तर केवल अनुवाद नहीं, बल्कि साधक का आत्मानुभव है. इसमें लेखक का गहन अध्ययन, अध्यात्म के प्रति उनकी आस्था और साहित्यिक अभिरुचि का अद्भुत संगम दिखाई देता है उन्होंने गीता को अपने अन्तःकरण से जी कर ही उसके भावों को कवित्व में ढाला है, इसीलिए यह कृति ह्रदय स्पर्शी बन पड़ी है.
इस रूपान्तर के माध्यम से गीता का शाश्वत सन्देश नई पीढ़ी तक पहुँचाना सराहनीय प्रयास है. यह केवल गीता का पुनर्पाठ नहीं बल्कि जीवन- मूल्यों की पुनर्स्थापना भी है. जब - जब मनुष्य अपने मार्ग से विचलित होता है, तब - तब गीता का यह स्वर उसे सही दिशा दिखाता है. गीता के सन्देश निः संदेह उस आलोक स्तम्भ की तरह हैं जो अंधकार में भटके पथिक को उसकी सही राह दिखाता है.
यह कृति न केवल गीता के सन्देश को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम है वरन उस श्रेष्ठ परंपरा का भी उदाहरण है जिसमें अध्यात्म और साहित्य का सुन्दर संगम दिखाई देता है यहाँ न केवल शास्त्र की गंभीरता है, बल्कि काव्य का सौंदर्य भी है, न केवल उपदेश है, बल्कि आत्मीय संवाद भी है. यह काव्य - रूपान्तर समय की माँग है क्योंकि इसके माध्यम से गीता का शाश्वत सन्देश अधिकाधिक पाठकों तक पहुँच कर उनके जीवन की राह को आलोकित करेगा
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