Wednesday, 18 June 2025

एक पर्वत, एक योगी

 



        एक पर्वत,एक योगी 

       नीला आकाश! दूर, दूर तक फैली हिमाच्छादित  चोटियाँ 

      उनके बीच एक शिखर,  दीखता है शांत, 

       लेकिन उसमें कम्पन भी है, 

      जैसे भीतर ध्यान चल रहा हो.

     उसकी चुप्पी में गूँज है  आत्मा की --

     वह बोलता  नहीं किन्तु सुनता है सब कुछ.       

     वह चलता नहीं,

      पर बहती हैं  असंख्य जलधारायें  उस से.

      उसकी ऊँचाई तुम्हें सिर झुकाना सिखाती है-

      और उसकी कठोरता-- अपने भीतर करुणा को सहेज रखना

       वह योगी है -- चिर - समाधिस्थ --

       फिर भी सदैव जागृत.


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