दिव्य - दृष्टि - वरदान प्राप्त तुम
वेदव्यास से हे संजय!
युद्ध - भूमि की गतिविधि मुझको
बतलाते जाओ निर्भय.
दुर्योधन की हठधर्मी, उस पर --
मेरी ममता की डोर
खींच ले गयी सारे कुल को --
महाकाल के मुख की ओर
कुरुक्षेत्र के धर्म -धाम में
होगा अब भीषण संग्राम
पाण्डु और मेरे पुत्रों का
क्या होगा संजय! परिणाम?
युद्ध नहीं यह महाकाल का --
होगा नृत्य भयंकर
याद दिलाएंगे युग - युग तक
रक्तवर्ण माटी प्रस्तर
लिखने वाला है क्रूर काल
कुरुकुल की करुण कहानी
मिटने वाली है भव्य राष्ट्र की
गौरवमयी कहानी
जो भी हो अब देख रहे जो --
सब कुछ मुझको बतलाओ
बना लिया पत्थर है मन को
यथा घटित कहते जाओ.
( गीतेतर -- क्षमा याचना सहित)
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