Tuesday 13 March 2018

राम --- तुम्हें प्रणाम !





















 समय - शिला पर  उत्कीर्ण               
 सत्यम, शिवम् ,सुन्दरम की
  शाश्वत कल्पना को साकार करता
  चिरंतन मर्यादा  का अनुपम पर्याय
  एक   सुन्दर नाम
'  राम '

 स्वयं  परमेश्वर थे  तुम  , या   उनके --
 अनेक अवतारों  में से  एक  --
 दैवी गुणों से संपन्न  महामानव ,
अथवा आजीवन संघर्षोंकी अग्नि में
 तप कर कुंदन बने
एक साधारण  मनुष्य ?

मात- पिता के  सहज स्नेह भाजन
अनुज बन्धुओं के आदर्श मार्गदर्शक
ऋषिकुल के  यज्ञ , तपश्चर्या को
निर्विघ्न संपन्न कराने का
 दायित्व निभाते किशोर
राजकुमार राम !

सघन वन के भीतर जन- शून्य एकांत में
निर्दोष होकर भी , समाज से बहिष्कृत
 संवेदनशून्य बैठी  शिलावत नारी  को
 समुचित सम्मान देकर
 पुनर्जीवित करते सरल , सहृदय
   न्यायप्रिय  राम !


पिता की आज्ञा सहज  शिरोधार्य  किये
सत्ता , वैभव,  को  तृणवत त्याग कर
निर्विकार मन, वन की दिशा में
 पत्नी सहित गमन करते
वीतरागी  सन्यासी से
 युवराजा राम !

सुदूर  वन प्रान्तर  में सदा  से उपेक्षित
दलित , पीड़ित , शोषित,
 वनवासी समाज को
  सम्मान और  स्नेह  देकर
 मित्रवत अपनाते
  जन - जन के  नायक
  वनवासी   राम !


अपरिमित वैभव और अविजित शक्ति के
 मद में आकंठ  डूबी अविवेकी  सत्ता को
अचूक   शर - संधान से  भूलुंठित कर
 असत्य पर सत्य की विजय  सिद्ध करते
  परम पराक्रमी
  धनुर्धारी  राम  !

समरसता और न्याय की
 आधारशिला   पर
 स्वर्गतुल्य  अनुपम ' रामराज्य '  के संस्थापक
संस्कृति ,  सिद्धान्तों के  सजग संपोषक
सर्वकालिक पूजनीय, मर्यादा पुरुषोत्तम
रघुवंशी राम  !
शत - शत प्रणाम !!!



                          





1 comment:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त रचना के लिए आभार!