जीवन के पल
पल पल करके आज बीतता
पल पल कर बीतेगा कल
रिसता जाता अनजाने ही
जीवन- घट का संचित जल
पल पल करके आज बीतता
पल पल कर बीतेगा कल
रिसता जाता अनजाने ही
जीवन- घट का संचित जल
देखा अपना बचपन मैंने हास और उल्लास लिये
फिर यौवन आया था मेरे सपनों का आकाश लिये
देखी इन्हीं पलों में मैंने सस्मित सुबह सलोनी आती
देखी प्रतिदिन दुपहर संध्या की बेला भी आती जाती
देखा मैंने पूर्ण चन्द्रमा , फिर उसको घटते बढ़ते
देखा निशि को नील गगन पर हीरे मोती जड़ते
चार पहर होते हैं दिन के, वही चार जीवन के भी
छोटे, बड़े सभी के हैं ये धनी और निर्धन के भी
ये पल काल देव के चेरे अमर और अक्षय होते
ये ही पल प्राणी जीवन के अच्छे बुरे समय होते
जन्म - मरण के बीच सभी को ये पल हैं अवसर देते
किन्तु सुफल मिलता उनको जो सदुपयोग इनका करते
ये पल बदला करते रहते
एक वर्ष में चार स्वरुप
बिना रुके चलते रहते धर,
एक रूप फिर दूजा रूप
ये ही चार रूप जीवन के
पहला वासंती बचपन
ग्रीष्म रूप यौवन आता
उत्साह भरा फिर लेकर मन
आती तब अधेड़ अवस्था
पावस के समकक्ष लगे
भरा भरा परिवार लिए वह
हरा भरा सा वृक्ष लगे .
अंतिम रूप बुढ़ापा पतझड़
शुष्क पात सी हो काया
सोचा करता है तब प्राणी
क्या खोया है क्या पाया
और सोचता जाता है वह
आता देख बुढ़ापा
कितना जीवन पथ बाकी है
कितना उसने नापा
ये पल शाश्वत और सनातन,
जाते हैं फिर आ जाते
पर क्या वे भी आते हैं जो
तज कर देह चले जाते ?
आने जाने के क्रम में ये
कर्मशीलता सिखलाते
सतत कर्म करने का हमको
अनुपम पाठ पढ़ा जाते .
देखा निशि को नील गगन पर हीरे मोती जड़ते
चार पहर होते हैं दिन के, वही चार जीवन के भी
छोटे, बड़े सभी के हैं ये धनी और निर्धन के भी
ये पल काल देव के चेरे अमर और अक्षय होते
ये ही पल प्राणी जीवन के अच्छे बुरे समय होते
जन्म - मरण के बीच सभी को ये पल हैं अवसर देते
किन्तु सुफल मिलता उनको जो सदुपयोग इनका करते
ये पल बदला करते रहते
एक वर्ष में चार स्वरुप
बिना रुके चलते रहते धर,
एक रूप फिर दूजा रूप
ये ही चार रूप जीवन के
पहला वासंती बचपन
ग्रीष्म रूप यौवन आता
उत्साह भरा फिर लेकर मन
आती तब अधेड़ अवस्था
पावस के समकक्ष लगे
भरा भरा परिवार लिए वह
हरा भरा सा वृक्ष लगे .
अंतिम रूप बुढ़ापा पतझड़
शुष्क पात सी हो काया
सोचा करता है तब प्राणी
क्या खोया है क्या पाया
और सोचता जाता है वह
आता देख बुढ़ापा
कितना जीवन पथ बाकी है
कितना उसने नापा
ये पल शाश्वत और सनातन,
जाते हैं फिर आ जाते
पर क्या वे भी आते हैं जो
तज कर देह चले जाते ?
आने जाने के क्रम में ये
कर्मशीलता सिखलाते
सतत कर्म करने का हमको
अनुपम पाठ पढ़ा जाते .
रचयिता ---- श्री ईश्वरीदत्त द्विवेदी
Picture courtesy ---
Wonderful colors of Nature
Wonderful colors of Nature
3 comments:
बहुत सुंदर विचार ।सादर नमन।
Marvellous.
Bahut Sunder.
Post a Comment