नदी को बहने दो
बहती रहने दो उसे
बाँधो मत उसकी उन्मुक्त जलधार को
अपनी स्वार्थ-सिद्धि के निमित्त
बहने दो उसे अविराम
क्योंकि अनंत अवरोधों के बावजूद
निरंतर प्रवहमान रहना ही है उसकी प्रकृति
और नियति भी
बहने दो उसे निर्बाध और निश्चिन्त
क्योंकि अविरल प्रवाह ही बनाता है उसे
स्वच्छ , सुन्दर और कल्याणकारी
जीव-जगत के लिये
मत अवरूद्ध करो उसका नियत पथ
क्योंकि ठहरना नहीं है उसका स्वभाव
यदि रोक ली गयी बलपूर्वक कभी कहीं
तो खो देगी अपना नैसर्गिक स्वरुप
क्योंकि चिरंतन प्रवाह ही है
उसके शब्दातीत सौंदर्य और शुचिता का सम्वाहक
उसकी अनन्य जिजीविषा का सजल उत्सव
और मेरी प्रेरणा का अजस्र स्रोत भी
जाने दो उसे सोल्लास अपने गंतव्य की ओर
क्योंकि वही है उसके जीवन का लक्ष्य
कंक्रीट के बांधों में बांध उसे झील मत बनाओ
नदी है वह , उसे नदी ही रहने दो
अवांच्छित बंधनों में जकड़े जाना
स्वीकार्य नहीं होता किसी को भी
चाहे वह नदी हो या किसी अंतःस्थल से निःसृत
कोई नितांत सरल भावधारा !
Photo courtesy
eUttaranchal.com.
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