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श्रीमद्भगवद् गीता भारत की आत्मा है. भारत का धर्मग्रन्थ है. नीति शास्त्र का चितेरा है. कर्मयोग का अग्रणी शास्त्र है. इतना अधिक गंभीर है कि जिसने भी इसका अध्ययन किया, उसीने उसके अपने गूढ अर्थ निकाले. अर्थात गीता सबकी चहेती हो गयी. गीता का पढ़ना इसीलिए धार्मिक कृत्यों में गिना जाने लगा.
भारत को समझने के लिये गीता का अध्ययन आवश्यक समझा जाता है. कृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया, परन्तु यह ज्ञान मात्र अर्जुन को नहीं दिया गया, अपितु अर्जुन के व्याज से यह ज्ञान सर्वत्र जगत को दिया गया उद्बोधन है, जिसके माध्यम से भारत को समझने के लिये आसान मार्ग दिखाया गया है.
अब तक गीता के सैकड़ों अनुवाद हो चुके हैं. कई महत्वपूर्ण टीकायें लिखी गयी हैं. अनुवादों में भी विनोबा तक ने गीता के अनेक रहस्य उद्घाटित किये हैं, फिर भी णित नये ग्रन्थ प्रकाश में आ रहे हैं.
हिंदी भाषा में भी गीता के सरल अनुवाद प्रकाश में आये हैं. श्री ईश्वरी दत्त द्विवेदी का यह ग्रन्थ भी उसी श्रेष्ठ परंपरा का महत्वपूर्ण अनुवाद ग्रन्थ है.
ईश्वरी दत्त द्विवेदी धार्मिक विचारों के जाने माने विद्वान हैं. उन्होंने अपने जीवन के श्रेष्ठ पचास वर्ष धार्मिक विचारों को प्राणवंत बनाने में लगा दिये. गीता उनकी प्रिय पुस्तक रही है. उन्होंने अध्ययन ही नहीं किया बल्कि गीता के गूढतम अर्थो के रहस्य को भी जानने की चेष्टा की है. यह स्पष्ट है कि द्विवेदी का यह गीता अनुवाद उनके दीर्घ कालीन अध्ययन और मनन का ही सुफल है.