गीताध्ययन शीलस्य प्राणायाम परस्य च 1
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्म कृतानि च
जो गीता का सतत अध्ययन
श्रद्धा से करता रहता
पूर्व जन्म के पाप मुक्त हो
प्रभु में विलय किया करता.
गीता शास्त्रमिदम पुण्यम यः पठेत प्रियतः पुमान
विष्णों पद्मवापनोति भय शोकादि वर्जितः
शुद्ध चित्त से जो मनुष्य --
पावन गीता का पठन करे
शोक और भय रहित हुआ,
वह विष्णु धाम को गमन करे.
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्नैः, शास्त्र विस्तरै:
या स्वयंपद्मनाभस्य मुख पद्मा द्विनिः सृता निः सृता
कमल नाभ के मुख से निकला--
सकल वेद शास्त्रों का सार
गीताध्ययन, मनन, चिंतन से --
करता नर भव सागर पार.
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्
शास्त्र, उपनिषद गोधन समय हैं,
दुहने वाले बृजनन्दन
वत्स रूप में अर्जुन ने ---
अमृत का किया प्रथम सेवन
एकम् शास्त्रम देवकीपुत्र गीतामेको देवो देवकीपुत्र एव
एको मंत्रस्तस्य, नामानि यानि कर्मप्येकंतस्य देवस्य सेवा.
शास्त्रों में सर्वोत्तम गीता--
निकली जिन प्रभु के मुख से
उनके नाम - मन्त्र की माला,
जो जपता रहता सुख से.
--
No comments:
Post a Comment