रजत शिखरों की गोद में बसे,
अपने सुन्दर घर- संसार को छोड़ती ,
निकल पड़ी वह नन्ही सी बालिका,
एक अनजानी, सुदीर्घ यात्रा पर.
घर की सुख-सुविधा, सुरक्षा से दूर,
एक अनजाने पथ पर, बढती चली गयी,
विघ्न-बाधाओं का सामना करती हुई,
जानती न थी ,उनका कहीं भी अंत नहीं.
अनायास ले लिया यह कठिनम प्रण उसने,
कि रुकेगी नहीं, कभी भी,कहीं भी,
समय की गति के साथ बढ़ती ही रहेगी,
अपने अभीप्सित लक्ष्य को पाने तलक.
कठोर चट्टानी दुरूह वन -प्रांतर में,
निर्भीक,अविचल बढती रही वह,
कभी सघन जंगलों से गुजरी तो,
कूद पड़ी निडर कभी गहरी खाइयों में .,
संकरी घाटी में स्वयंको सिकोड़ कर
आगे निकलने का बनाया था रास्ता ,
कभी मानव -निर्मित बांधों में बंध कर,
कुछ पल अपने को दुर्बल था पाया.
किन्तु शीघ्र मुक्त हो शान्त स्वरुप धर,
बढ़ चली आगे सब कुछ संवारती,
अमृत- जल से अपने तटों को सींचती,
सुख -समृद्धि बाँटती निष्पक्ष जीव जगत में.
धैर्य और साहस से जीत सारी बाधाएं
सहस्त्राधिक कोसों की दूरी यों नाप कर,
जा मिली अंततः अतल सागर से,
एकाकार उसमें हो अनंत से जुड़ने!
PHOTO CREDIT
Ritu Mathews
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