दे कर नई पीढ़ी को अग्नि पंखों का उपहरा
उड़ गया वह देवदूत अचानक ही
अंतरिक्ष की असीम ऊँचाइयों की ओर
उस अनहोनी वाले दिन
जब युवा छात्रों के एक दल को
अपने ज्ञान से विस्मित करता खड़ा था वहप्रकाश स्तम्भ सा उनके सम्मुख
जब युवा छात्रों के एक दल को
अपने ज्ञान से विस्मित करता खड़ा था वहप्रकाश स्तम्भ सा उनके सम्मुख
मन्त्र मुग्ध से सुन रहे थे वे वह ओजपूर्ण व्याख्यान
क्योंकि उसका शब्द,शब्द था
विज्ञान के खजाने की जादुई कुन्जी
और वक्ता था स्वयं ही उपलब्धियों का दस्तावेज.
किन्तु तभी निरभ्र आकाश से वज्रपात जैसा
देखा सबने वह दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य
उनका कटे वृक्ष की तरह भूमिपर गिर जाना,
स्तब्ध कर गया था देश भर की धड़कनों को
सोचती हूँ क्यों हुआ होगा
यों अचानक उनका चले जाना
क्या उस अदृश्य लोक से आया था कोई सन्देश
कि वहां पर जरूरत थी उनकी तत्काल ही
सरलता और विलक्षण प्रतिभा से विभूषित
स्वयं मेंअनूठा व्यक्तित्व था वह ऐसा
जिसकी उपलब्धियाँ गौरव हैं देश का
जिसका जीवन है आदर्श युवा पीढ़ी का
प्रखर वैज्ञानिक, जो थे अतुल देश प्रेमी भी
'जनता के राष्ट्रपति'सादगी की प्रतिमा
छात्रों के मित्र, संतों के स्नेहभाजन
रत्नों में श्रेष्टतम, सच्चे भारतरतन ( रत्न)
विदा महामानव! विदा कर्मयोगी!
जाते हो जब उस अमरों के लोक को
देखेंगे हम नीले आकाश पर दमकता
'अब्दुल कलाम' तारा अबसे हर रात में!
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