Hey COVID Nineteen
Tuesday, 6 October 2020
Sunday, 4 October 2020
TREES
Trees make me believe,
That life will continue on the earth,
Despite all the grave challenges,
Including the climate change.
As they are known to be,
The oldest inhabitants of the planet,
The first-ever living forms
Migrating from the marine world
Towards the barren shoreland.
It was their booming growth,
That provided the naked earth,
With its first cover Of green,
Making it verdant and lively
And initiate the chain of creation.
Trees make me believe, they are,
Nature's strongest children,
Surviving all hazardous weathers,
And ensure life never ceases to exist
On this beautiful planet.
Saturday, 26 September 2020
COVID NINETEEN -- THE CURSE OF 2020
Hey Covid Nineteen! The world has had enough Of your criminal venture Untold
sufferings you have inflicted Upon innocent humans worldwide Turning life upside
down Damaging all its vital aspects You have caused such deep injuries That will
take decades to recover With painful loss of precious lives Grief and fear have
overcome all emotions Even springtime famed for regeneration Has seen more
coffins than fair blossoms Enough of your insane and cruel practices O you ! the
most despicable visitor Pack your bags at the earliest now Be gone and disappear
at once forever.
Monday, 27 July 2020
A TRIBUTE TO DR. A.P.J.ABDUL KALAM
दे कर नई पीढ़ी को अग्नि पंखों का उपहरा
उड़ गया वह देवदूत अचानक ही
अंतरिक्ष की असीम ऊँचाइयों की ओर
उस अनहोनी वाले दिन
जब युवा छात्रों के एक दल को
अपने ज्ञान से विस्मित करता खड़ा था वहप्रकाश स्तम्भ सा उनके सम्मुख
जब युवा छात्रों के एक दल को
अपने ज्ञान से विस्मित करता खड़ा था वहप्रकाश स्तम्भ सा उनके सम्मुख
मन्त्र मुग्ध से सुन रहे थे वे वह ओजपूर्ण व्याख्यान
क्योंकि उसका शब्द,शब्द था
विज्ञान के खजाने की जादुई कुन्जी
और वक्ता था स्वयं ही उपलब्धियों का दस्तावेज.
किन्तु तभी निरभ्र आकाश से वज्रपात जैसा
देखा सबने वह दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य
उनका कटे वृक्ष की तरह भूमिपर गिर जाना,
स्तब्ध कर गया था देश भर की धड़कनों को
सोचती हूँ क्यों हुआ होगा
यों अचानक उनका चले जाना
क्या उस अदृश्य लोक से आया था कोई सन्देश
कि वहां पर जरूरत थी उनकी तत्काल ही
सरलता और विलक्षण प्रतिभा से विभूषित
स्वयं मेंअनूठा व्यक्तित्व था वह ऐसा
जिसकी उपलब्धियाँ गौरव हैं देश का
जिसका जीवन है आदर्श युवा पीढ़ी का
प्रखर वैज्ञानिक, जो थे अतुल देश प्रेमी भी
'जनता के राष्ट्रपति'सादगी की प्रतिमा
छात्रों के मित्र, संतों के स्नेहभाजन
रत्नों में श्रेष्टतम, सच्चे भारतरतन ( रत्न)
विदा महामानव! विदा कर्मयोगी!
जाते हो जब उस अमरों के लोक को
देखेंगे हम नीले आकाश पर दमकता
'अब्दुल कलाम' तारा अबसे हर रात में!
Saturday, 9 May 2020
प्रार्थना
जब कभी अपनी आर्द्रता खो कर
शुष्क और कठोर बन जाये
मेरा यह ह्रदय,
तब अपनी असीम करुणा की बौछार बन
इसे सिंचित करने
जीवन में आ जाना मेरे प्रभु!
जब खो जाये जीवन से लालित्य और सरसता
किसी मधुर गीत के बोल बनकर
बरस पड़ना मेरे मन की धरती पर
जीवन संघर्ष का तुमुल कोलाहल
जब चारों ओर से घेर
एकांत में बंदी बना ले मुझे
तब ,हे मेरे मौन के स्वामी!
तुम आ जाना मेरे पास
अपनी परम शांति और विश्राम लेकर
जब मेरा भिक्षुक सा दीन ह्रदय
किसी अँधेरे कोने में दुबका बैठा हो
तुम अपने राजसी दल बल के साथ
चले आना मेरे पास
सारे द्वार तोड़कर
जबअन्तहीन कामनायें
मस्तिष्क को भ्रम और धूल
से आच्छादित कर
अन्धा बना दें
तब , चिर_- जागृतऔर पावन, हे मेरे प्रभु!
मुझे मार्ग दिखाने प्रकट हो जाना तुम
अपने दिव्य प्रकाश
और घोर गर्जन के साथ
( गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता का हिंदी रूपांतर, उनकी जन्म तिथि पर श्रद्धांजलि हेतु )
Sunday, 26 April 2020
SPRING IN THE PANDEMIC TIME ..
This afternoon I was awakened,
From my daydreaming,
By the sweet " Koo- hoo" of a koel,
Coming from the mango orchard.
I could also feel the touch,
Of warm spring air,
Laden with the fragrance,
Of freshly blooming flowers.
And suddenly I realised,
That Spring must have made,
Its advent on the earth,
To help Nature begin,
Her business of regeneration.
The birds knew it already,
The trees and flowers knew it,,
And so did the bees and butterflies,
Only I failed to notice the change.
Scared as I was by the presence,
Of an invisible marauder,
Lurking around threateningly,
Striking anyone unawares.
The cruel killer hits all and sundry,
Without the least regard,
For age or gender; religion or nation
Making anyone victim of its evil design
There is no time for outside revelries,
No scope for any celebrations,
Social gatherings have been postponed,
Till good times make a comeback.
Meanwhile, let's calmly assume,
That this year Spring has arrived,
Just to keep our hopes alive,
Even in these gloomiest of times.
To help us feel a little less dismal,
A little less frightened,
And a lot more strong,
Than ever before.
To fight this unprecedented war,
Where no arms or weapons would help,
Where our very existence is at stake,
And the enemy isn't even visible.
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