Wednesday, 24 August 2022

गुलाब हूँ मैं ....

 जानता हूँ  छोटी सी है

 मेरी यह जीवन रेखा 

इसलिए नहीं पालता कोई बड़े सपने

लम्बी और निरापद ज़िन्दगी के 


सशंकित सा रहता हूँ  हर पल ,हर घड़ी 

न जाने कौन सा पल मेरे लिये अंतिम हो

समय तो  चलता रहता अपनी सहज गति से

 मुझ जैसे अकिंचन के रहने न रहने से उसे क्या ?


 कभी तो सुबह खिलने के साथ ही  

मंदिर को जाते किसी श्रद्धालु की

शुभ- दृष्टि  पड़ जाती जब  मुझ पर

तोड़ लिया जाता तुरुन्त देवता की खातिर

  


 कभी   स्कूल जाता मासूम सा बच्चा  कोई

देना चाहता मुझे अपनी '' फेवरिट टीचर'' को

 या कोई  शरारती  फेंक देता  यूँ ही  तोड़कर

 क्रूरता ही जैसे  मनोरंजन  हो उसके लिए


 कभी  अचानक तेज़ झोंका हवा का 

छिन्न-भिन्न कर देता मेरे अंग-प्रत्यंग को

 धूल और मिटटी में मुझे मिलाकर

 स्वयं को  विजयी समझ गर्व से चला जाता


  

 मन में किसी के लिए  चाहत छुपाये

कोई संकोची  युवा  चाहता मेरी मदद

स्वयं कुछ न कहकर भी , केवल संकेतों में

' उस'  तक पहुँचाने अपनी भावनाएं


दिन भर यदि इन सबसे बच पाया 

तब भी क्या चैन से रात  गुजरेगी ?

अँधेरा होते ही झेलना न पड़ेगा 

  बर्फ जैसे  तुषार कणों का  दंश भी?


यूँ  आशंकाओं  से घिरे होने पर  भी

करता रहता  प्रयास प्रसन्न  रहने  का

 फूल हूँ न, यही तो धर्म है मेरा

 रंग और सुगन्ध, बाँटता  रहूँ सबको , सदा !

   

   
















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