लो फिर आ धमकी वह नन्हीं गौरय्या
चोंच में दबाये एक छोटा सा तिनका
खिड़की पर लगे कूलर की छत पर
साधिकार आ बैठी न जैसे कोई डर
घोंसला बनाने का करके इरादा
कैसी भोली , नासमझ है गौरय्या !
समझाया था उसको कई बार मैंने
कि कहीं और जाकर बनाये घरोंदा
उड़ाने की कोशिश की डरा धमका कर
पर सुनती कहाँ है वह कभी किसी की
बड़ी हठीली है मूर्ख गौरय्या !
कठोरता दिखा कर भी था रोकना चाहा
फेंक दिए एक बार सब तिनके उठाकर
हार मान ताकि चली जाय और कहीं
पर वह तो फिर फिर लौट आई है इधर ही
छोटी सी है पर बड़ी निडर गौरय्या !
पूछ ही बैठी मै आखिर तब उस से
चाहती हो क्यों यहीं पर घर बसाना
बताया था न तुम्हे सही नहीं है जगह यह
क्यों खोज लेती नहीं ठांव कोई और कहीं ?
पल भर सोच फिर चहचहाई गौरय्या !
, '' मुझे तो यहीं लगती है पूरी सुरक्षा
क्योंकि है भरोसा मेरा तुम पर यह पक्का
कि नहीं पहुँचाओगी कभी हानि मेरे घर को
न ही करने दोगी किसी और को भी ऐसा ''
बात सुन उसकी दिल मेरा भर आया
थोड़ी सिरफिरी पर प्यारी है गौरय्या !
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