Induja
Saturday, 14 December 2024
Nirjharini: याचना
Wednesday, 18 October 2023
Horrors of war
Scenes from the war zone!!
Missile and rockets darting
from one side to the other,
Making the sky tremble
No less than the earth below.
Houses and tall buildings,
Crumbling down like pack of cards,
Debris piled up on the ground,
Silent proof of utter devastation,
Caused by insane minds.
Hapless victims praying for life,
In the wake of unimaginable plight,
Keep asking themselves and others,
" What crime or sin did we commit,
To deserve this inhuman torture? "
What evil spirit did initiate,
This mad, mad, misadventure,
Thrusting unsuspecting lives,
Into the blazing flames of
Excruciating pain and death?
But what I seek to know is not,
Who to blame for this bloody venture,
Nor does it interest me to learn,
Who is losing ground in the battle,
Or, who is likely to emerge the winner.
For, I know it's never going to end,
As hatred begets hatred only,
And revenge with its deadly teeth,
Is ever on prowl to dig out again,
What appears to have been buried.
But my heart instinctively goes
Beyond the visuals on TV screen
Imagining the fate of those abducted
Destined to undergo untold sufferings
For no fault of theirs.
I know its rather futile to hope
An early end to this ugly warfare
But do wish some miracle to happen
Concluding it in amicable solutions
To avoid further loss of precious lives
Picture from internet
Courtesy -- freepik. Com
Monday, 31 July 2023
A covid time poem
Welcome, August!
May you be a harbinger of happy change
Relief, resilience and restoration
To the human race suffering
Under the pangs of a calamity
Never known before.
May the good times return soon
And life wear its familiar colors again
Flourish, as it has been doing for ages
Under the loving care of the sun
And mother Nature!
Friday, 28 April 2023
चिर-स्मरणीया माँ
चिर - स्मरणीया माँ!
तुम्हें याद करने के लिए मुझे,
किसी विशेष दिन की नहीं अपेक्षा,
स्मृति पटल पर अंकित हो तुम,
जीवन के एक अंग की तरह ही,
अविच्छिन्न रूप से सम्मिलित हो तुम
मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व में, क्योंकि,
महसूस करती हूँ तुम्हारा प्रभाव सदैव
अपने हर विचार और व्यवहार में.
कठिन परिस्थितियों में भी जब सहज रहकर
करती हूँ प्रयास संघर्ष-रत रहने का
जाने -अनजाने तुम्हारे पद चिन्होँ पर ही
मैं भी तो निर्भय चल रही होती हूँ.
किसी का भी दुःख देख, सुन, कर
विचलित हो उठता है जब मेरा मन ,
तब,तुम्हारी सहज करुणा का उद्रेक ही तो,
छलक आता आँखों में अश्रु बनकर.
कहीं भी क्रूरता और अन्याय के विरुद्ध,
दृढ़ता से मुखरित होते मेरे स्वर,
तुम्हारी ही न्याय प्रियता को तो,
प्रतिध्वनित करते हैं घनीभूत होकर.
कुछ शुभ घटित होने पर, अनायास ही,
जुड़ जाते हैं हाथ , उस परम-पिता के प्रति ,
नत -मस्तक हो आभार प्रकट करने में,
तुम्हारा ही अनुसरण करती हूँ मैं,
अविस्मरणीया माँ!
Wednesday, 12 April 2023
April Showers
"April showers bring May flowers " true,
But it's already half -past March,
And not a speck of clouds in the sky,
Can it rain without them, ever?
Yet, I hope they'll flash on the horizon soon
As big waterbags bursting into showers
Giving all the plants and trees their due
Neglecting not even a blade of grass.
An unyielding optimist I am
Like any of my simple village folk,
Who are kind and strong in their faith,
Loving Nature and God in any situation.
My faith, too, is as unfaltering,
Can neither be shaken nor shattered,
With questions or disheartening doubts,
Prior to or post a life experience.
Thursday, 23 March 2023
Monday, 20 February 2023
जाग रही है रात
सूरज के जाने के बाद
उसके लौट कर आने तक
जागती रहती है रात.
घने अँधेरे में, अदृश्य रहकर भी
बनाये रखती अपनी स्वतंत्र अस्मिता
छायी रहती गाँव, गली, कस्बे, शहर, महानगर
खेत, खलिहान, कल -कारखानों , और अस्पतालों में
हिमशिखर, नदी, झील,समुद्र और महासागर,
केसर की क्यारियों और सूने मरुस्थलों तक.
जागती रहती सदैव उन कर्मवीरों का साथ देती
डटे रहते जो निरंतर कर्तव्य -पथ पर
ताकि जन-जीवन चलता रहे अनवरत
निर्बाध गति से बढ़ता रहे कार्य - व्यापार
रह सकें गतिमान बसें, रेलें और वायुयान
अस्पतालों में उपलब्ध हों इमरजेंसी सुविधायें
जागते मिलें डाक्टर, नर्स और वार्ड बॉय
दुर्घटना पीड़ितों को मिल जाय तत्काल राहत.
जागती रहती खेतोँ में, मचानों पर
किसी हलकू और झबरा की नींद को भगाती
हरी भरी फसल को चट न कर जायें जिस से
ताक में बैठे जंगली जानवर
और कहीं हमदर्द उन बेघरों की बनकर
जाग रहे ठिठुरते जो शहर के फुटपाथों पर
अलाव की अस्थाई गर्मी के सहारे
सुबह के सूरज की बाट जोहते
नाइट वॉचमैन के साथ -साथ चलती
घूमता जो रहता अकेले सड़कों पर
टॉर्च और डंडा लिये, सीटी बजाकर
'जागते रहो ' की टेर लगाता
सीमा पर सैनिकों के साथ खड़ी रहती
बर्फ़ीली चोटियों में दीवार बन कर
सुनिश्चित करते जो देश की सुरक्षा
कभी कभी तो देकर प्राणों का दान भी.
सोती नहीं पलभर कभी, कहीं वह
प्रतिकूल मौसम, परिस्थितियों में भी
सजग रहती सदा सूरज के आने तक
निष्ठावान प्रतिनिधि की भूमिका निभाती
जागती रहती है साँवली,सयानी रात
जीवन - चक्र को गतिमान रखती
सूरज के जाने के बाद
उसके लौट कर आने तलक.