Monday 7 May 2018

एक चिट्ठी -- माँ के नाम


       पूजनीया माँ
                     शतशः प्रणाम
आज वर्षो बाद  तुम्हारे लिए पत्र लिखने बैठी  हूँ .  दो  वर्ष  से भी अधिक  समय   बीत गया और तुमसे मिलना नहीं हुआ , और  न ही किसी तरह से कोई संपर्क हो सका .  तुम तक अपनी बात पहुँचाने के मेरे सारे प्रयास विफल रहे है . तुम कैसी हो , कहाँ हो , यह जानने का कोई उपाय  नहीं . इस भौतिक जगत की समस्त सीमाओं से दूर न जाने किस  दुनिया  में जाकर बस गयी हो , किसी ऐसी जगह  जहाँ से कोई कभी लौट कर नहीं  आता . जहाँ से न कोई पत्र आता है , न कोई सन्देश. वह स्नेह- सूत्र जो हमें एक दूसरे से जोड़े हुए  था , टूट कर कहाँ खो गया , नहीं जानती,. वह शीतल छाँव जहाँ बैठकर मै जीवन संघर्ष की सारी थकान भूल जाती  थी, अब  केवल  याद  बन कर रह गयी  है . अँधेरे में  मुझे मार्ग दिखानेवाली उस ज्योति शलाका को समय चक्र ने मुझसे छीन लिया है और मै दिग्भ्रमित सी होकर उसे फिर से पाने का निष्फल प्रयास करती रहती हूँ .

                                     परन्तु  एक आश्चर्यजनक सत्य यह भी है कि  तुम्हारे न रहने के बाद भी  अनेक बार     तुम्हारी उपस्थिति अपने आस- पास महसूस होती है, इस विरोधाभास से मै स्तब्ध हूँ . कभी कभी लगता है  कि
  शारीरिक बन्धनों से मुक्त हो कर तुम और भी निकट आ गई हो.शायद इसीलिए तुमसे बहुत सी बातें  कहने का मन है. वह सब जो संकोच के कारण कभी नहीं कहा , आज  अभिव्यक्ति के लिए उद्यत है .जन्म से लेकर समझ आने तक की  बातो का  तो मुझे ज्ञान  नहीं किन्तु उसके बाद जो हर कदम पर तुमने मुझे दिया ,उसकी अनेकानेक स्मृतियाँ हैं जो सदैव मेरे साथ रहती हैं. वे छोटी छोटी किन्तु अनमोल शिक्षायें जिन्होंने जीवन को दिशा दी, चरित्र की नीँव बनकर  व्यक्तित्व को ठोस आधार दिया , उन बेशकीमती जीवन मूल्यों के लिये तुम्हें धन्यवाद देना चाहती  हूँ जिन्हें तुम मेरी झोली में भरती रहीं.  कितना उपयुक्त है यह कथन कि माँ ही बच्चे की पहली                                                                                                                                                                             
शिक्षक  होती है . बहुत छोटी थी जब एक दिन  चूड़ियाँ पहनने की जिद्द करने पर तुमने कहा था '' ये सब श्रृंगार की चीजें विद्यार्थियों के लिये नहीं  हैं , , असली सुन्दरता तो विद्या और सदगुणों से मिलती है और विद्या की देवी
 उन्हीं  बच्चों  को अपना आशीर्वाद देती हैं   जो  सदैव साफसुथरे रहते हैं और खूब मन लगाकर पढाई करते हैं ''बहुत बाद में बड़ी कक्षाओं में जाने पर जब '' विद्या धनं सर्व धनं प्रधानम ''पढ़नेको मिला तो  याद आया कि  यह बात तो माँ  ने पहले ही बता दी थी . माँ,  सरल शब्दों में  कही तुम्हारी वह बात मन  में इतनी गहरी पैठ गयी कि  आज भी यदि किसी आभूषण  या पुस्तक में से एक को  चुनना हो तो हाथ पहले पुस्तक पर ही  जायेगा .ज्ञानार्जन के प्रति  रुचि के जो बीज तुमने बाल्यावस्था में ही मन में बो दिए थे, वे  निरंतर   विकसित होते रहे है और आज भी उनकी छाया  में  सुख , संतोष की अनुभूति होती है .पढने  लिखने में सदैव सार्थकता लगीऔर आज भी पुस्तकों के बीच में ही सच्ची शांति मिलती है .
                                 
                              तुम्हारी दूसरीबात , जो पत्थर की लकीर की तरह मन पर अंकित है , यह थी कि कभी किसी को छोटा या हेय मत समझो , किसी की निर्बलता , निर्धनता  या अपंगता पर हँसना बहुत बुरी बात है . जितना हो सके दूसरों की मदद करो, किन्तु बिना अहसान दिखाये .अपने से  उम्र में बड़े हर व्यक्ति का सम्मान करो, चाहे वह तुम्हारे घर का नौकर हो ,कोई गरीब मजदूर या  द्वार पर आया  भिखारी , क्योंकि  हर इंसान स्नेह और सम्मान चाहता है . तुमने यह भी सिखाया कि दूसरों के साथ बाँटने से  सुख दुगुना हो जाता है और किसी का
 दुःख  बंटाने से जो शांति मिलती है उसके जैसा और कोई सुख नहीं......
                                           
                                              माँ., तुम्हारी भावानुभूति अप्रतिम थी , दूसरे के मन  की बात जान लेना तुम्हारी अनेक क्षमताओं में से एक था .  दीन दुखी , निर्बल और संकटग्रस्त लोग तुम्हारी सहानुभूति के  विशेष पात्र   होते थे .स्वयं सीमित साधनों के बीच रहते हुए भी तुम सदैव जरूरतमंदों की मदद करने के लिए तत्पर रहती थीं , मैंने कितनी ही बार तुम्हे अपने हिस्से का खाना किसी भूखे भिखारी को खिलाते देखा है .अपने लिए तुमने कभी  किसी से कुछ नहीं माँगा, जीवन भर निःस्वार्थ भाव से देना तुम्हारा स्वभाव रहा ,फिर वे लेने वाले  चाहे अपने रहे हों या नितांत अपरिचित राहगीर .

                                         अपनी इस बेटी पर तुम्हे बहुत नाज़ था , शायद पहली संतान होने के कारण .यह आशा भी करती थी कि बड़ी होकर कुछ बहुत अच्छा काम  करेगी . यद्यपि मै कुछ भी विशेष  नहीं कर सकी किन्तु तुम हमेशा  मेरा उत्साह बढाती रहती थी मेरी छोटी से छोटी  उपलब्धि को भी सराहती थी , मेरे लाये  अकिंचन से उपहारों  को भी माथे से लगा कर उनका मूल्य  कई गुना  बढ़ा  देती थी . आज जब मै फिर से  तुम्हारे लिए कुछ करना चाहती हूँ तो तुम  मेरी पहुँच से बहुत दूर जा चुकी हो  .
                                       
                                                        पिता जी की.बरसी पर जब तुम्हारे पास गयी थी तो तुमने कहा था '' अब तुम्हारे पास काफी फुर्सत  है , कुछ लिखना शुरू कर दो ,  पढ़ना पढ़ाना  तो बहुत हो गया , अब  अपने अनुभवों
को   आत्मकथा  के रूप  में  लिख डालो  '' मैंने कहा '' क्या बात करती हो  माँ, ऐसा किया ही क्या है जो लिखने के योग्य हो  '' तुम्हारा उत्तर था
''  जो भी करने को मिला , अच्छी तरह करने की कोशिश तो की न , इतने सारे छात्रों को पढ़ाया , उन्हें योग्य बनने
के लिए प्रेरित किया , अब भी वही कर सकती हो , लिखते लिखते कितने ही प्रसंग और उदाहरण  याद आते जायेंगे , जो आगे आने वाले बच्चों को भी लाभ पहुँचायेंगे ''  तब यह नहीं जानती थी  कि  यही मेरे लिए तुम्हारा अन्तिम आग्रह  सिद्ध होगा .तुम्हारे जाने के बाद अक्सर ही  वे शब्द याद आते रहते है किन्तु  कुछ लिखने से  पहले द्विविधा  में  पड़ जाती हूँ  कि क्या लिखूँ, तुम होतीं तो फिर तुम्हारे पास चली आती पूछने  कि कैसे शुरू करूँ.
           आज समाचार पत्र में  एक संस्था का प्रस्ताव  पढ़ा जिस में महिलाओं को  मदर्स डे के अवसर पर  '' माँ के नाम '' शीर्षक से पत्र  लिखने का आमंत्रण दिया  गया है, उसे पढ़ कर ऐसा लगा  कि यह प्रस्ताव तो  मेरे ही लिए है, मेरे अनगिनत अनलिखे पत्रों को आकार देने का  सुअवसर , मन में दबे  ढंके उदगार न जाने कब से  बाहर निकलने
के लिए बेचैन थे , तो  मैंने साहस बटोर कर कलम उठा ही ली और अन्ततः उन अमूर्त  भावनाओं को  आकार  और  अभिव्यक्ति  मिल गयी  इस पत्र के रूप में .

                                      माँ , तुम तक  यह चिट्ठी  पहुँचेगी  कि नहीं , यह तो मै नहीं जानती किन्तु इसे लिख कर
  मुझे अपूर्व शांति  का  अनुभव  अवश्य हो  रहा है ,, कौन जाने  मेरी यह श्रद्धांजलि तुम तक पहुँच ही जाय और मुझे मिल  जाय  एक बार फिर तुम्हारा अमूल्य  आशीर्वाद .
 यही कामना करते हुये,
  सदैव तुम्हारी अनन्त स्मृतियों के साथ
              तुम्हारी  बेटी
 
                                                                          MAY 1,  2012                                             








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